जिससे लड़ता हूँ मै अब उस को मना लेता हूं..... ख़ूब बदली है तेरे बाद ये आदत मैंने.....
मेरे खेत की मिट्टी से पलता है तेरे शहर का पेट मेरा नादान गाँव अब भी उलझा है कर्ज की किश्तों में।.
उन्होने जाते जाते बड़े ग़ुरूर से कहा था......." तुम जैसे तो बहुत मिलेगे"..... हमने भी मुस्कुराके पूछ ही लिया ,हमारे जैसा हि क्यू चाहिये...